Netaji Subhash Chandra Bose Biography In Hindi | नेताजी सुभाषचंद्र बोस ज...
स्वतंत्रता
अभियान के एक
और महान क्रान्तिकारियो
में सुभाष चंद्र
बोस का
नाम भी आता
है। नेताजी सुभाषचंद्र
बोस ने भारतीय
राष्ट्रिय सेना का
निर्माण किया था।
जो विशेषतः “आजाद
हिन्द फ़ौज़” के नाम
से प्रसिद्ध थी।
सुभाष चंद्र बोस,
स्वामी विवेकानंद को बहोत
मानते थे।
“तुम
मुझे खून दो
मै तुम्हे आजादी
दूंगा” सुभाष चंद्र बोस
का ये प्रसिद्ध
नारा था। उन्होंने
अपने स्वतंत्रता अभियान
में बहोत से
प्रेरणादायक भाषण दिये
और भारत के
लोगो को आज़ादी
के लिये संघर्ष
करने की प्रेरणा
दी।
सुभाषचंद्र बोस की जीवनी
पूरा नाम
– सुभाषचंद्र जानकीनाथ बोस
जन्म – 23 जनवरी
1897
जन्मस्थान
– कटक (ओरिसा)
पिता – जानकीनाथ
माता – प्रभावती
देवी
शिक्षा – 1919 में
बी.ए. 1920 में
आय.सी.एस.
परिक्षा उत्तीर्ण।
सुभास चंद्र बोस भारतीय
स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी
नेता थे। जिनकी
निडर देशभक्ति ने
उन्हें देश का
हीरो बनाया। द्वितीय
विश्वयुद्ध के दौरान
अंग्रेज़ों के खिलाफ
लड़ने के लिये,
उन्होंने जापान के सहयोग
से आज़ाद हिन्द
फौज का गठन
किया था।
बाद में सम्माननीय
नेताजी ने पहले
जर्मनी की सहायता
लेते हुए जर्मन
में ही विशेष
भारतीय सैनिक कार्यालय की
स्थापना बर्लिन में 1942 के
प्रारम्भ में की,
जिसका 1990 में भी
उपयोग किया गया
था।
शुरू में 1920 के अंत
ने बीसे राष्ट्रिय
युवा कांग्रेस के
उग्र नेता थे
एवं 1938 और 1939 को वे
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के
अध्यक्ष बने। लेकिन
बाद में कुछ
समय बाद ही
1939 में उन्हें महात्मा गांधी
/ Mahatma Gandhi से चल से
विवाद के कारण
अपने पद को
छोडना पड़ा। लेकिन
1940 में भारत छोड़ने
से पहले ही
उन्हें ब्रिटिश ने अपने
गिरफ्त में कर
लिया था। अप्रैल
1941 को बोस को
जर्मनी लाया गया।
जहा उन्हें भारतीय स्वतंत्रता
अभियान की बागडोर
संभाली, और भारत
को आजादी दिलाने
के लिये लोगो
को एकजुट करने
लगे और एकता
के सूत्र में
बांधने लगे।
नवंबर 1941
में, जर्मन पैसो
से ही उन्होंने
बर्लिन में इंडिया
सेंटर की स्थापना
की और कुछ
ही दिनों बाद
फ्री इंडिया रेडियो
की भी स्थापना
की, जिसपर रोज़
रात को बोस
अपना कार्यक्रम किया
करते। तक़रीबन 3000 मजबुत
स्वयं सेवी सैनिको
ने इरविन रोमेल्स
द्वारा हथियाए अफ्रीका कॉर्प्स
को अपने कब्जे
में किया।
बाद में बोस
को जर्मन से
बहोत सहायता मिली
और उन्होंने भारत
की खोज के
लिये जर्मन जमीन
का भी उपयोग
किया। इसी दौरान
बोस पिता भी
बने, उनकी पत्नी
और सहयोगी एमिली
स्किनल, जिनसे वे 1934 में
मिले थे। उन्होंने
एक बच्ची को
जन्म दिया। 1942 की
बसंत से, जापानियों
ने दक्षिणी एशिया
को हथिया लिया
था और वे
जर्मन प्राथमिकताओं को
बदलने लगे थे।
बाद में भारत
पर हुआ जर्मन
हमला असहनीय बनता
गया।
इसे देखते हुए बोस
ने दक्षिणी एशिया
जाने का निर्णय
लिया। अडोल्फ़ हिटलर
उसी समय 1942 के
अंत में बोस
से मिले थे।
और उन्होंने भी
बोस को दक्षिणी
एशिया जाने की
सलाह दी और
पनडुब्बी लेने की
भी सलाह दी।
बोस ने अच्छी
तरह से एक्सिस
ताकत को जान
लिया था और
खेदसूचक ढंग से
वह ज्यादा देर
तक नही टिक
पाई।
फेब्रुअरी
1943 में बोस जर्मन
पनडुब्बियों पर पहुचें।
मैडागास्कर में, उन्हें
जापानीज पनडुब्बी में स्थानांतरित
किया गया। जहा
मई 1943 में वे
जापानीज स्थान सुमात्रा में
उतरे।
जापानियों की सहायता
से ही सुभाष
चंद्र बोस – Subhash Chandra Bose ने इंडियन
नेशनल आर्मी (INA) का
पुनर्निर्माण किया। जिसमे ब्रिटिश
इंडियन आर्मी के भारतीय
सैनिक भी शामिल
थे। जिन्होंने सिंगापुर
युद्ध में महान
कार्य किया था।
इस तरह बोस
के आने से
मलैया और सिंगापुर
में भारतीय नागरीकों
की संख्या बढ़ने
लगी।
बोस के नेतृत्व
में जापानीज भारतीय
सरकार को विभिन्न
क्षेत्रो में सहायता
करने के लिये
राजी हुए। जैसे
की उन्होंने बर्मा
की सहायता की
थी। और साथ
ही जैसा साथ
उन्होंने फिलीपींस और मांचुकुओ
का दिया था।
उन्होंने भारत की
अस्थाई सरकार, जिसे बोस
प्रतिपादित कर रहे
थे, की स्थापना
जापानीयो के साथ
मिलकर अंडमान और
निकबर में की।
बोस अच्छी तरह से
अपनी सेना का
नेतृत्व कर रहे
थे – उनमे काफी
करिश्माई ताकत समायी
थी। इसी के
चलते उन्होंने प्रसिद्ध
भारतीय नारे “जय हिन्द” की घोषणा की। और
उसे अपनी आर्मी
का नारा बनाया।
उनकें नेतृत्व में
निर्मित इंडियन नेशनल आर्मी
एकता और समाजसेवा
की भावना से
बनी थी। उनकी
सेना में भेदभाव
और धर्मभेद की
जरा भी भावना
नही थी। इसे
देखते हुए जापानियों
ने बोस को
अकुशल सैनिक बताया।
और इसी वजह
से वे अपनी
आर्मी को ज्यादा
समय तक नही
टिका पाये।
1944 के अंत में
और 1945 के प्रारम्भ
में ब्रिटिश इंडियन
आर्मी पहले तो
रुकी थी लेकिन
बाद में उन्होंने
पुनः भारत पर
आक्रमण किया। जिसमे लगभग
आधी जापानी शक्ति
और इंडियन नेशनल
आर्मी में शामिल
आधे जापानी सैनिक
मारे गए। बाद
में इंडियन नेशनल
आर्मी मलय पेनिनसुला
गयी जहा सिंगापुर
में उन्हें देखा
गया था और
उन्होंने स्वयं ही खुद
को जापानियों के
हवाले कर दिया
था। बोस ने
पहले जापानियों के
डर से आत्मसमपर्ण
का निर्णय नही
लिया था। बल्कि
उन्होंने भागकर मंचूरिया जाने
की बजाये सोवियत
संघ के भविष्य
के लिये आत्मसमर्पण
करने की ठानी।
ताइवान में हुए
विमान अपघात में
उनकी मृत्यु हो
गयी थी। लेकिन
आज भी बहोत
से भारतीयो को
इस बात पर
विश्वास नही की
उनका विमान हादसा
वास्तव में हुआ
था भी या
नही। उस समय
हादसे के बाद
भी भारतीय बंगाल
प्रान्त के लोगो
को भरोसा था
की बोस भारत
की आजादी के
लिये दोबारा आएंगे।
रंगून के ‘जुबली
हॉल’ में सुभाष
चंद्र बोस द्वारा
दिया गया वह
भाषण सदैव के
लिए इतिहास के
पत्रों में अंकित
हो गया। जिसमें
उन्होंने कहा था
कि- “स्वतंत्रता बलिदान
चाहती है। आपने
आज़ादी के लिए
बहुत त्याग किया
है। किन्तु अभी
प्राणों की आहुति
देना शेष है।
आज़ादी को आज
अपने शीश फूल
चढ़ा देने वाले
पागल पुजारियों की
आवश्यकता है। ऐसे
नौजवानों की आवश्यकता
है। जो अपना
सिर काट कर
स्वाधीनता देवी को
भेट चढ़ा सकें।
“तुम
मुझे ख़ून दो,
मैं तुम्हें आज़ादी
दूँगा।”
इस वाक्य के जवाब
में नौजवानों ने
कहा – “हम अपना
ख़ून देंगे” उन्होंने आईएनए
को ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी
दिया। सुभाष भारतीयता
की पहचान ही
बन गए थे
और भारतीय युवक
आज भी उनसे
प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
वे भारत की
अमूल्य निधि थे।
‘जय हिन्द’ का नारा
और अभिवादन उन्हीं
की देन है।
सुभाष चंद्र बोस के
ये घोषवाक्य आज
भी हमें रोमांचित
करते है। यही
एक वाक्य सिद्ध
करता है कि
जिस व्यक्तित्व ने
इसे देश हित
में सबके सामने
रखा वह किस
जीवन का व्यक्ति
होगा।
‘इंडियन
नेशनल आर्मी’ के संस्थापक
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
की मृत्यु पर
इतने वर्ष व्यतीत
हो जाने के
बाद भी रहस्य
छाया हुआ है।
सुभाषचंद्र बोस की
मृत्यु हवाई दुर्घटना
में मानी जाती
है। समय गुजरने
के साथ ही
भारत में भी
अधिकांश लोग ये
मानते है कि
नेताजी की मौत
ताईपे में विमान
हादसे में हुई।
कहा जाता है
की 18 अगस्त 1945 को
यह हादसा ताइवान
में हुआ था।
लेकिन फिर भी
बहोत से लोगो
को इस बात
पर भरोसा नही
था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
सर्वकालिक नेता थे,
जिनकी ज़रूरत कल
थी। आज है
और आने वाले
कल में भी
होगी। वह ऐसे
वीर सैनिक थे,
इतिहास जिनकी गाथा गाता
रहेगा। उनके विचार,
कर्म और आदर्श
अपना कर राष्ट्र
वह सब कुछ
हासिल कर सकता
है, जिसका वह
हक़दार है। सुभाष
चंद्र बोस स्वतंत्रता
समर के अमर
सेनानी, मां भारती
के सच्चे सपूत
थे।
नेताजी भारतीय स्वाधीनता संग्राम
के उन योद्धाओं
में से एक
थे। जिनका नाम
और जीवन आज
भी करोड़ों देशवासियों
को मातृभमि के
लिए समर्पित होकर
कार्य करने की
प्रेरणा देता है।
उनमें नेतृत्व के
चमत्कारिक गुण थे।
जिनके बल पर
उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज
की कमान संभाल
कर अंग्रेज़ों को
भारत से निकाल
बाहर करने के
लिए एक मज़बूत
सशस्त्र प्रतिरोध खड़ा करने
में सफलता हासिल
की थी।
नेताजी के जीवन
से यह भी
सीखने को मिलता
है कि हम
देश सेवा से
ही जन्मदायिनी मिट्टी
का कर्ज़ उतार
सकते हैं। उन्होंने
अपने परिवार के
बारे में न
सोचकर पूरे देश
के बारे में
सोचा। नेताजी के
जीवन के कई
और पहलू हमे
एक नई ऊर्जा
प्रदान करते हैं।
वे एक सफल
संगठनकर्ता थे। उनकी
बोलने की शैली
में जादू था
और उन्होंने देश
से बाहर रहकर
‘स्वतंत्रता आंदोलन’ चलाया। नेताजी मतभेद
होने के बावज़ूद
भी अपने साथियो
का मान सम्मान
रखते थे। उनकी
व्यापक सोच आज
की राजनीति के
लिए भी सोचनीय
विषय है।
एक नजर में
सुभाषचंद्र बोस का
इतिहास
1) 1921 में
सुभाषचंद्र बोस / Subhash Chandra Bose इन्होंने सरकारी नोकरी
में बहोत उच्च
स्थान का त्याग
करके राष्ट्रीय स्वातंत्र
के आंदोलन में
कुद पडे। स्वातंत्र
लढाई में हिस्सा
लेने के लिये
अपनी नौकरी का
इस्तीफा देणे वाले
वो पहले आय.सी.एस.
अधिकारी थे।
2) 1924 में
कोलकत्ता महानगर पालिका के
मुख्य कार्यकारी अधिकारी
के रूप में
उनको चित्तरंजन दास
इन्होंने चुना। पर इसी
स्थान होकर और
कौनसा भी सबुत
न होकर अंग्रेज
सरकार ने क्रांतीकारोयों
के साथ सबंध
रखा ये इल्जाम
लगाकर उन्हें गिरफ्तार
मंडाले के जेल
में भेजा गया।
3) 1927 में
सुभाषचंद्र बोस और
पंडित जवाहरलाल नेहरू
इन दो युवा
नेताओं को कॉंग्रेस
के महासचिव के
रूप में चुना
गया। इस चुनाव
के वजह से
देशके युवाओं में
बड़ी चेतना बढ़ी।
4) सुभाषचंद्र
बोस इन्होंने समझौते
के स्वातंत्र के
अलावा पुरे स्वातंत्र
की मांग कॉंग्रेस
ने ब्रिटिशों से
करनी चाहिये। ऐसा
आग्रह किया। 1929 के
लाहोर अधिवेशन में
कॉंग्रेस ने पूरा
स्वातंत्र का संकल्प
पारित किया। ये
संकल्प पारित होने में
सुभाषचंद्र बोस इन्होंने
बहोत प्रयास किये।
5) 1938 में
सुभाषचंद्र बोस हरिपुरा
कॉंग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष
बने।
6) 1939 में
त्रिपुरा यहा हुये
कॉंग्रेस के अधिवेशन
में वो गांधीजी
के उमेदवार डॉ.
पट्टाभि सीतारामय्या इनको घर
दिलाकर चुनकर आये। पर
गांधीजी के अनुयायी
उनको सहकार्य नहीं
करते थे। तब
उन्होंने उस स्थान
का इस्तीफा दिया
और ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ ये नया पक्ष
स्थापन किया।
7) इंग्लंड
दुसरे महायुध्द में
फसा हुवा है।
इस स्थिति का
लाभ लेकर स्वातंत्र
के लिए भारत
ने सशस्त्र लढाई
करनी चाहिए’ ऐसा प्रचार
वो करते थे।
इस वजह से
अंग्रेज सरकार का उनके
उपर का गुस्सा
बढ़ा। सरकारने उन्हें
जेल में डाला
पर उनकी तबियत
खराब होने के
वजह से उन्हें
घर पर ही
नजर कैद में
रखा। 15 जनवरी १९४१ में
सुभाषबाबू भेस बदलकर
अग्रेजोंके चंगुल से भाग
गये। काबुल के
रास्ते से जर्मनी
की राजधानी बर्लिन
यहा गये।
8) भारत के स्वातंत्र
लढाई के लिये
सुभाषबाबू ने हिटलर
के साथ बातचीत
की। जर्मनी में
‘आझाद हिंद रेडिओ
केंद्र’ शुरु किया।
इस केंद्र से
अंग्रेज के विरोध
में राष्ट्रव्यापी संकल्प
करने का संदेश
वो भारतीयोंको देने
लगे।
9) जर्मनी में रहकर
भारतीय स्वतंत्र के लिये
हम कुछ महत्वपूर्ण
रूप की कृति
कर सकेंगे। ऐसा
ध्यान में आतेही
सुभाषचंद्र बोस जर्मनी
से एक पनडुब्बी
से जपान गये।
रासबिहारी बोस ये
भारतीय क्रांतिकारी उस समय
जपान में रहते
थे। उन्होंने मलेशिया,
सिंगापूर, म्यानमार आदी। पूर्व
आशियायी देशों में के
भारतीयोका ‘इंडियन इंडिपेंडेंट लीग‘ (हिंदी स्वातंत्र संघ) स्थापन
किया हुवा था।
जपान इ हिंदी
के हाथ में
आये हुये अंग्रेजो
के लष्कर में
के हिंदी सैनिकोकी
‘आझाद हिंद सेना’ उन्होंने संघटित की थी।
उसका नेतृत्व स्वीकार
करने की सुभाषबाबू
को रासबिहारी बोस
ने उन्होंने आवेदन
किया। नेताजीने वो
आवेदन स्वीकार किया।
इस तरह सुभाषचंद्र
बोस आझाद हिंद
सेने के सरसेनापती
बने।
10) 1943 में
अक्तुबर महीने में सुभाषबाबू
के अध्यक्षता में
‘आझाद हिंद सरकार’ की स्थापना हुयी। अंदमान
और निकोबार इन
व्दिपो कब्जा कटके आझाद
हिंद सरकार ने
वहा तिरंगा लहरा
दिया। अंदमान को
‘शहीद व्दिप’ और निकोबार
को ‘स्वराज्य व्दिप’ ऐसे नाम दिये।
जगन्नाथराव भोसले, शहनवाझ खान,
प्रेम कुमार सहगल,
डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन
आदी उनके पास
के साथी थे।
डॉ. लक्ष्मी स्वामी
नाथन ये ‘झाशी
की राणी’ पथक के
प्रमुख थी।
‘तिरंगा
झेंडा’ ये आझाद
हिंद सेन का
निशान ‘जयहिंद’ ये अभिवादन
के शब्द, ‘चलो
दिल्ली’ ये घोष
वाक्य और ‘कदम
कदम बढाये जा’ ये समरगित था। इसी
सेना ने 1943 से
1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों से
युध्द किया था
तथा उन्हें भारत
को स्वतंत्रता प्रदान
कर देने के
विषय में सोचने
को मजबूर किया।
11) जपान सरकार के निवेदन
के अनुसार सुभाषचंद्र
बोस एक विमान
से टोकियो जाने
के लिये निकले
उस विमान को
फोर्मोसा मतलब ताइहोकू
व्दिप के हवाई
अड्डे के पास
दुर्घटना हुयी। इस दुर्घटना
में 18 अगस्त 1945 को नैताजी
की मृत्यु हो
गयी।
बचपन से ही
सुभाष में राष्ट्रीयता
के लक्षण प्रकट
होने लगे थे
और निस्वार्थ सेवा
भावना उनके चरित्र
की विशेषता थी।
इन सभी उदात्त
प्रवुत्तियों से ही
उनके क्रांतिकारी पर
उदार व्यक्तित्व का
निर्माण हुआ था।
भारत सरकार ने 1992 में
सुभाषबाबू को ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च सम्मान की
घोषणा की गयी
लेकिन बोस परिवार
वालोने वो स्वीकार
करने से इन्कार
कर दिया।
Subhash Chandra Bose भारतीयता की पहचान ही बन गए थे और भारतीय युवक आज भी उनसे प्रेरणा ग्रहण करते है। वे भारत की अमूल्य निधि थे। ‘जयहिन्द’ का नारा और अभिवादन उन्ही की देंन है। उनकी प्रसिध्द पंक्तियाँ है – “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हेँ आजादी दूंगा।”
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