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Kasturba Gandhi in Hindi | कस्तूरबा गांधी जी की जीवनी

कस्तूरबा मोहनदास गांधी, महात्मा गांधी की पत्नी  उनके पति की संस्था के साथ वो भी एक राजनितिक कार्यकर्त्ता और नागरिक हक्क के लिए लड़ने वाली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थी।
पूरा नाम  – कस्तूरबा मोहनदास गांधी
जन्म      – 11 अप्रैल 1869
जन्मस्थान – पोरबंदर
पिता      – गोकुलदास कपाडिया
माता      – व्रजकुवर कपाडिया
विवाह     – मोहनदास करमचंद गांधी

प्रारंभिक जीवन 


पोरबंदर के गोकुलदास और व्रजकुवर कपाडिया की पुत्री के रूप में का कस्तूरबा का जन्म हुआ। 1883 में 14 साल की कस्तूरबा का विवाह, सामाजिक परम्पराओ के अनुसार 13 साल के मोहनदास करमचंद गांधी के करवा दिया गया। उनके शादी के दिन को याद करते हुए, उनके पति कहते है की, “हम उस समय विवाह के बारे में कुछ नहीं जाते थे, हमारे लिए उसका मतलब केवल नए कपडे पहनना, मीठे पकवान खाना और रिश्तेदारों के साथ खेलना था क्यू की, यह एक प्रचलित परंपरा थी, ताकि किशोर दुल्हन ज्यादा से ज्यादा समय अपने माता पिता के साथ बिता सके और अपने पति से दूर रह सके। मोहनदास का कहना था की शादी के बाद वे कस्तूरबा से प्रेम करने लगे थे और वे स्कूल में भी उन्ही के बारे में सोचते थे उनसे मिलने की योजनाये बनाते रहते थे। वे कहते थे की कस्तूरबा की बाते और यादे अक्सर उनका शिकार कर जाती।

जब गांधीजी ने लन्दन में 1888 में अपनी पढाई छोड़ डी, तब कस्तूरबा महात्मा गांधी जी के साथ रहने लगी और एक शिशु को भी जन्म दिया जिसका नाम हरिलाल गांधी था। कस्तूरबा को 3 और बच्चे थे, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी।

कस्तूरबा गांधी का राजनितिक जीवन :
कस्तूरबा गांधी उनके पति के साथ काम करके, कस्तूरबा एक सामाजिक कार्यकर्त्ता और स्वतंत्रता सेनानी बन गयी थी। गांधीजी के लॉ की पढाई हेतु दक्षिण अफ्रीका जाने के बाद, उन्होंने भी अपने पति के साथ 1897 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की। 1904 से 1914 तक, दुर्बन में वह फ़ीनिक्स सेटलमेंट में एक्टिव रही। 1913 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय कामगारों का साथ दिया, इसके बाद कस्तूरबा को 3 महीने के लिए मजदूरो की जेल में भी जाना पड़ा। बाद में भारत में, कभी जब महात्मा गांधी को जेल हो जाती तब कुछ समय के लिए कस्तूरबा उनके अभियान को आगे बढाती। 1915 में, जब गांधीजी भारतीय बागानों को मदत करने वापिस आये तब कस्तूरबा ने उनका साथ दिया। उन्होंने स्वास्थ विज्ञानं, अनुशासन, पढना और लिखना सिखाया।
कस्तूरबा गांधी की मृत्यु
कस्तूरबा गांधी के जन्म में उलझन के कारन दीर्घकालीन फेफड़ो की बीमारी से पीड़ित थी। उनके फेफड़े न्युमोनिया की बीमारी से पीड़ित थे।
                                                     
जनवरी 1944 में, कस्तूरबा को 2 हृदय विकार आये जिन्होंने उनकी सेहत को बहोत ख़राब किया। जहा इलाज के बावजूद उनके दर्द में कोई कमी नहीं हुई। सास लेने में तकलीफ होने के कारन उन्हें रात में नींद नहीं आती थी। परिवार की सेवा की चाह से उन्होंने अपने इलाज के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह ली। काफी दिनों के बाद सरकार ने उन्हें ठीक करने के लिए विशेष डॉक्टर को उनके इलाज के लिए आमंत्रित किया, जिसने उनका इलाज किया। शुरुवात में उन्होंने उत्तर तो दिया, और दुसरे हफ्ते के अंत तक उनकी तबियत में सुधार भी हो रहा था और वे व्हील चेयर पर बैठकर लोगो से बाते भी करने लगी लेकिन कुछ समय बाद उन्हें उस बीमारी ने फिर से घेर लिया।
कई लोग उन्हें ये कहते थे की, वे जल्द ही इस बीमारी से ठीक हो जायेंगे लेकिन प्रति उत्तर में वे कहती थी की, नहीं, अब मेरा समय गया है
कस्तूरबा वह महिला थी जिसने जीवन भर अपने पति का साथ दिया। जबकि स्वतंत्रता के दिनों में महिलाओ को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता था, उस समय महात्मा गांधीजी ने कभी कस्तूरबा को समाजसेवा करने से नहीं रोका। कम उम्र में शादी होने के बाद भी कस्तूरबा अपनी जवाबदारियो से नहीं भागी, वो अंत तक अपने कर्तव्यो का पालन करती रही, और अपने समाज की सेवा करती रही।

निच्छित ही कस्तूरबा आज के महिलाओ की प्रेरणास्त्रोत है।

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