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Mother Teresa Biography | संत मदर टेरेसा जीवन परिचय

मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक सन्यासिनी और ईसाई धर्म प्रचारक थी। उन्होंने ईसाई धर्म प्रचारको की स्थापना की थी, जिनका मुख्य उद्देश्य रोमन कैथोलिक धर्मो को एकत्रित करना था, उनकी संस्था है जिसमे सन 2012 तक 4500 भागिनियाँ जुडी और 133 देशो में उनकी यह संस्था आज भी सक्रीय है। गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगो, गरीब और अनाथ बच्चो को भी उनकी संस्था सहारा देती है और गरीब और अनाथ बच्चो को स्कूल में पढ़ाती भी है। उनकी संस्था का एक ही उद्देश्य है की वे दुनिया के गरीब से गरीब इंसान की भी मुफ्त में सेवा करना चाहते है।
मदर टेरेसा को बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमे 1979 में मिला नोबेल शांति पुरस्कार भी शामिल है। 19 अक्टूबर 2003 को उन्हेंकलकत्ता की भाग्यवान टेरेसाकी उपाधि भी दी गयी थी। इसके बाद दिसम्बर 2015 में पॉप फ्रांसिस ने के रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा उन्हें संत की उपाधि दी गयी थी। संत बनने की उनकी विधि 4 सितम्बर 2016 को हुई थी।
पूरा नाम – अग्नेसे गोंकशी बोंजशियु
जन्म  – 27 अगस्त, 1910
जन्मस्थान – युगोस्लाविया
मदर टेरेसा का जन्म एंजेनेज़ गोंक्स्हे बोजक्स्हिऊ के नाम से 26 अगस्त 1910 को कोसोवर अल्बेनियन् परिवार में हुआ था। लेकिन 27 अगस्त को उनका वास्तविक जन्मदिन माना जाता है। उनकी जन्मभूमि स्कोप्जे आज रिपब्लिक ऑफ़ मकदूनिया की राजधानी है, उनके जन्म के समय यह ओटोमन साम्राज्य का ही एक भाग था।
                                                     
निकोल्ले और द्रनाफिले बोजक्स्हिऊ की सभी संतानों में मदर टेरेसा सबसे छोटी है। उनके पिता मकदूनिया की अल्बेनियन् कम्युनिटी जैसी राजनितिक पार्टी के सदस्य थे जिनकी मृत्यु 1919 में हुई थी, उस समु मदर टेरेसा केवल 8 साल की ही थी। शायद उनके पिता कोसोवो  के प्रिज्रें से थे, जबकि उनकी माता ग्जकोवा के नजदीकी गाँव से थी।
जोन ग्रफ्फ़ क्लुकास की आत्मकथा के अनुसार बचपन से ही मदर टेरेसा को समाज कार्य करने वाले और धर्म प्रचारक लोगो की कहानियाँ सुनने का शौक था, और सिर्फ 12 साल की उम्र में ही उन्होंने ठान लिया था की वह अपना जीवन समाज सेवा करने में ही व्यर्तित करेंगी। और अंततः 15 अगस्त 1928 को उन्होंने अपने इस क्रांतिकारी अभियान की शुरुवात की थी।
1928 में केवल 18 साल की उम्र में उन्होंने लोरेटो बहनों के साथ रहने के लिये घर छोड़ दिया था, वही मदर टेरेसा इंग्लिश भी सीखती थी और ईसाई धर्म प्रचारक बनने की राह में चल पड़ी। लोरेटो बहाने भारत में बच्चो को पढ़ाने के लिये इंग्लिश भाषा का उपयोग करते थे। घर से निकालने के बाद उन्होंने दोबारा कभी अपनी बहनों और अपनी माँ को नही देखा था। 1934 तक उनका परिवार स्कोप्जे में ही रहता था और इसके बाद वे अल्बानिया के टिराना में चले गए थे।
इसके बाद सन 1929 में मदर टेरेसा भारत आई और दार्जिलिंग में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की, वही हिमालय की पहाडियों के पास सेंट टेरेसा स्कूल में वे बंगाली सीखी और वहाँ बच्चो को पढ़ाती थी 24 मई 1931 को उन्हें पहली बार सन्यासिनी की पदवी मिली थी। और इसके बाद उन्होंने अपना मूल नाम बदलकर टेरेसा ही रखा।
14 मई 1937 से मदर टेरेसा लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाती थी। टेरेसा ने अपनी जिंदगी के तक़रीबन 20 साल वही बिताये और 1944 में उनकी नियुक्ति हेडमिस्ट्रेस के पद पर की गयी थी। मदर टेरेसा को बच्चो को स्कूल में पढ़ाने का काफी शौक था, लेकिन अपने कलकत्ता में अपने जीवन और आस-पास फैली गरीबी से वे काफी चिंतित थी इस दौरान कई बार उनके शहर में हिंसक घटनाये भी घटित हुई थी।
मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक सन्यासिनी थी, जिन्होंने अपने जीवन को गरीबो और जरुरतमंदो की सहायता करने में ही व्यतीत किया। उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय काल्चुता में ही बिताया, जहाँ उन्होंने कई समाजसेवी संस्थाओ की स्थापना भी की। 1979 में ही टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और तभी से वह काफी लोकप्रिय बन गयी।
उनका भगवान में बहुत भरोसा था। उनके पास बहुत पैसा या संपत्ति नहीं थी लेकिन उनके पास एकाग्रता, विश्वास, भरोसा और ऊर्जा थी जो खुशी से उन्हें गरीब लोगों की मदद करने में सहायता करती थी। निर्धन लोगों की देख-भाल के लिये सड़कों पर लंबी दूरी वो नंगे पैर चलकर तय करती थी। लगातार कार्य और कड़ी मेहनत ने उनको थका दिया था फिर भी वो कभी हार नहीं मानी।
उन्होंने मानवता और उसकी शांति के लिए आजीवन स्वयं को समर्पित रखा।
पुरस्कार
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रामन मैगसेस पुरस्कार (1962)
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पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1971)
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जवाहरलाल नेहरू अवार्ड फॉर इंटरनॅशनल पीस (1972)
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नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
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भारत रत्न (1980)
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ऑर्डर ऑफ़ मैरिट (1983)
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राजीव गांधी सदभावना पुरस्कार (1993)
मृत्यु – 5 सितम्बर, 1997 के रात्रि के 9.30 बजे करुणामयी मदर सदा सदा के लिए इस संसार से विदा हो गयी।


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