Header Ads

Lady Lamp Florence Nightingale | “दी लेडी विथ दी लैंप” फ्लोरेंस नाइटिंगेल

फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक अंग्रेजी सामाजिक सुधारक और सांख्यिकीविद और आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक थी।
उन्होंने तब शोहरत हासिल की जब क्रीमियन युद्ध के दौरान उन्होंने प्रशिक्षित नर्सो के मैनेजर होने की भूमिका निभाई, वहाँ वह घायल सैनिको की सहायता कर रही थी। उन्होंने नर्सिंग को अत्यधिक अनुकूल प्रतिष्ठा दिलवाई और विक्टोरियन कल्चर की आइकॉन बनी, उनके कार्यो को देखते हुए विशेषतः उन्हें दी लेडी विथ दी लैंप की उपाधि भी दी गयी है।

दी लेडी विथ दी लैंपफ्लोरेंस नाइटिंगेल

फ्लोरेंस के पिता विलियम एडवर्ड नाइटिंगेल एक समृद्ध जमींदार थे, फ्लोरेंस को जर्मन, फ्रेंच और इटालियन भाषा के साथ-साथ गणित का भी अच्छा ज्ञान था।
युवावस्था से ही फ्लोरेंस नाइटिंगेल लोकोपकार में सक्रीय थी और गाँव के गरीब परिवार के लोगो की अपनी पारिवारिक जमीन पर रहकर सहायता करती थी। कहा जाता है की इस प्रकार लोगो की सेवा करते-करते ही नाइटिंगेल ने नर्सिंग को ही अपने करियर के रूप में चुना, इसके बाद नर्सिंग के पेशे को ही उन्होंने अपने जीवन का दिव्य उद्देश्य बनाया।
जब फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने जब अपने नर्स बनने के उद्देश्य के बारे में बताया तो उनके माता-पिता खुश नही थे और उन्होंने नाइटिंगेल को उपयुक्त प्रशिक्षण लेने से भी मना कर दिया था। विक्टोरियन युग में अंग्रेजी महिलाओ को किसी तरह का कोई संपत्ति अधिकार नही दिया गया था। उस समय नाइटिंगेल ने उपरी सामाजिक वर्ग में काम करने की बजाये निचले वर्ग को सुधारने का बीड़ा उठाया था।
1849 में नाइटिंगेल नेसूटेबलसज्जन रिचर्ड मोंकटन मिलनस के विवाह प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर किया था, जो पिछले कुछ वर्षो से उनका पीछा भी कर रहा था।
शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का कारण बताते हुए नाइटिंगेल ने कहा था की वह बौद्धिक और रोमांटिक रूप से उन्हें बार-बार उत्तेजित करता रहता था। 1850 में अंततः नाइटिंगेल ने नर्सिंग विद्यार्थिनी के रूप में दाखिला ले ही लिया और जर्मनी के कैसेर्सवर्थ में उन्होंने अपनी पढाई पूरी की।
                                                         
1860 में नाइटिंगेल ने लन्दन में सेंट थॉमस हॉस्पिटल की स्थापना कर प्रोफेशनल नर्सिंग की नीव रखी थी। दुनिया का यह पहला धर्मनिरपेक्ष नर्सिंग स्कूल था, जो आज लन्दन के किंग्स कॉलेज का ही एक भाग है। नर्सिंग में उनके पायनियर (अद्वितीय) कार्य के लिए उन्हें सम्मान देते हुए उनके नाम का एक मैडल भी जारी किया गया, जिसे नर्सिंग की दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड भी माना जाता है।
साथ ही उनमे जन्मदिवस को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनके द्वारा किये गए सामाजिक सुधारो में उन्होंने ब्रिटिश सोसाइटी के सभी भागो में हेल्थकेयर को काफी हद तक विकसित किया।
भारत में बेहतर भूख राहत की वकालत की और जहाँ महिलाओ पर अत्याचार होते है वहाँ महिलाओ के हक में लड़ी और देश में महिला कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
नाइटिंगेल एक विलक्षण और बहुमुखी लेखिका थी। अपने जीवनकाल में उनके द्वारा प्रकाशित किए गये ज्यादातर लेखो में चिकित्सा ज्ञान का समावेश होता था। उन्होंने कुछ लेख सरल अंग्रेजी भाषा में भी लिखे है, ताकि जिनकी अंग्रेजी ज्यादा अच्छी नही है वे लोग भी उन्हें आसानी से समझ सके। साथ ही सांख्यिकीय जानकारी की चित्रमय प्रस्तुति को बढ़ावा देने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके बहुत से कार्यो में हमें, उनके द्वारा किये गये धार्मिक और सामाजिक कार्यो की छवि दिखाई पड़ती है।
मृत्यु:
13 अगस्त 1910 को 90 साल की उम्र में लोंदों के मेफेयर की साउथ स्ट्रीट में अपने ही रूम में सोते समय 10 बजे शांतिपूर्वक उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनके रिश्तेदारों ने वेस्टमिन्स्टर ऐबी में उन्हें दफ़नाने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया और उन्हें हैम्पशैर के ईस्ट वेल्लो में सेंट मार्गरेट चर्च के कब्रस्तान में दफनाया गया था।
जाने से पहले वह अपने पीछे नर्सिंग की 100 से भी ज्यादा किताबे छोड़कर चली गयी, जिन्हें इससे पहले कभी प्रकाशित नही किया गया था।

1913 में फ्रांसिस विलियम सार्जंट द्वारा कार्रारा मार्बल में नाइटिंगेल की याद में एक स्मारक भी बनवाया गया और उसे फ्लोरेंस में सेंटा क्रोस के बेसिललिका मठ में रखा गया था।


No comments

Powered by Blogger.