Feroze Gandhi Biography | फिरोज गांधी की जीवन
फिरोज गांधी (फिरोज जहाँगीर गांधी)
एक भारतीय राजनेता और पत्रकार थे। लखनऊ में रहते हुए उन्होंने दी नेशनल हेराल्ड और
दी नवजीवन अख़बार के लिए काम किया है। वे इंदिरा गांधी के पति और जवाहरलाल नेहरु के
दामाद थे।
1942 में उन्होंने
इंदिरा गांधी (बाद में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी) से शादी और उनके दो
बेटे राजीव और संजय भी है। इस प्रकार वे नेहरु-गाँधी परिवार का हिस्सा बने। उनका बड़ा
बेटा राजीव बाद में भारत का प्रधानमंत्री भी बना। 1950 से 1952 तक वे प्रांतीय संसद
के सदस्य बने थे और लोकसभा के भी सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ती की गयी थी।
फिरोज जहाँगीर घंडी
के नाम से उनका जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम फरिदून जहाँगीर
घंडी और माता का नाम रतिमई था, जो बॉम्बे के खेतवाडी मोहल्ला में नौरोजी नाटकवाला भवन
में रहते थे।
उनके पिता जहाँगीर
किल्लीक निक्सन में मरीन इंजिनियर थे और इसके बाद उनका प्रमोशन वारंट इंजिनियर के रूप
में किया गया था। फिरोज अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे, उनके दो भाई दोरब और
फरिदून जहाँगीर और दो बहने तहमीना केर्शष्प और अलू दस्तूर है।
इसके बाद उनका परिवार
दक्षिण गुजरात के भरूच से बॉम्बे स्थानांतरित हो गया, जहाँ उनके पूर्वजो का भी घर था।
कहा जाता है की बॉम्बे के कोतपरिवड में आज भी उनके दादा का घर है।
1920 के शुरू में अपने
पिता की मृत्यु के बाद फिरोज और उनकी माता अपनी अविवाहित आंटी के साथ रहने के लिए अलाहाबाद
चले गये। उनकी आंटी शहर के लेडी डफरिन हॉस्पिटल में एक सर्जन थी। फिरोज ने विद्या मंदिर
हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर एविंग क्रिस्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन
की पढाई पूरी की थी।
परिवार और करियर:
1930 में कांग्रेस
के स्वतंत्रता सेनानियों की वानर सेना का निर्माण किया गया। इसके बाद एविंग क्रिस्चियन
कॉलेज के बाहर महिला प्रदर्शनकारियों को रोकते हुए ही उनकी मुलाकात कमला नेहरु और इंदिरा
गाँधी से हुई। प्रदर्शन के दौरान सूरज की गर्मी से कमला बेहोश हो गयी थी और फिरोज ने
उस समय उनकी सहायता की थी। अगले ही दिन, 1930 में भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल
होने के लिए उन्होंने पढाई छोड़ दी।
भारतीय स्वतंत्रता
अभियान में शामिल होने के बाद महात्मा गांधी से प्रेरित होकर फिरोज ने अपने उपनाम
“घंडी” को बदलकर “गांधी”
रखा। 1930 में लाल बहादुर शास्त्री
(भारत के दुसरे प्रधानमंत्री और उस समय वे अलाहाबाद जिला कांग्रेस समिति के मुख्य थे)
के साथ उन्हें भी जेल जाना पड़ा और उन्हें फैजाबाद के जेल में 19 महीनो तक रहना पड़ा।
रिहा होने के तुरंत
बाद, वे उत्तर प्रदेश के कृषि पर कोई कर ना दिए जाने वाले अभियान में शामिल हो गये
और इस वजह से जब वे नेहरु के करीब रहकर काम कर रहे थे तब 1932 और 1933 में उन्हें दो
बार जेल जाना पड़ा था।
1933 में फिरोज ने
पहली बार इंदिरा को प्रपोज किया, लेकिन इंदिरा और उनकी माता ने इसे अस्वीकार कर दिया।
इंदिरा का पालन पोषण नेहरु परिवार के आस-पास ही हुआ है। कहा जाता है की जब इंदिरा की
माता कमला नेहरु की हालत टीबी की वजह से काफी ख़राब थी और इंदिरा ही उन्हें 1934 में
भोवाली के अस्पताल में ले गयी थी और इसके बाद जब उन्हें अचानक इलाज के लिए यूरोप जाना
पड़ा तो इंदिरा ने ही उनकी यात्रा के सारे बंदोबस्त किये थे, लेकिन अंत में 28 फरवरी
1936 को उनकी माता की मृत्यु हो गयी। आने वाले वर्षो में इंदिरा और फिरोज इंग्लैंड
में एक-दूजे के काफी करीबी हो चुके थे। इसके बाद हिन्दू परंपराओ के अनुसार उन्होंने
1942 में शादी कर ली।
इंदिरा के पिता जवाहरलाल
नेहरु शुरू से ही इस विवाह के खिलाफ थे और उन्होंने उन दोनों को इस विषय पर महात्मा
गांधी से चर्चा करने के लिए भी कहा लेकिन इसके बावजूद नेहरु के हाँथो असफलता ही लगी।
इसके बाद भारत छोडो अभियान के समय उनके विवाह के छः महीने बाद ही उन्हें अगस्त
1942 में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। अलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल में उन्हें
1 साल की सजा सुनाई गयी थी। सजा काटकर आने के बाद अगले पाँच वर्ष उन्होंने अच्छे से
व्यतीत किये। 1944 में उनके बेटे राजीव और 1946 में उनके दुसरे बेटे संजय का जन्म हुआ
था।
आज़ादी के बाद, जवाहरलाल
नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। इसके बाद फिरोज और इंदिरा भी अपने दो बेटो के
साथ अलाहाबाद रहने लगे और वहा फिरोज दी नेशनल हेराल्ड अखबार के मैनेजिंग डायरेक्टर
भी बने। इस अखबार की स्थापना उनके ससुर (जवाहरलाल नेहरु) ने की थी।
1950-1952 तक प्रांतीय
संसद का सदस्य बनने के बाद फिरोज ने 1952 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र
से आज़ाद भारत का पहला जनरल चुनाव जीता। इसके बाद इंदिरा भी दिल्ली से आ गयी और उनके
लिए अभियान आयोजक का काम करने लगी। इसके तुरंत बाद फिरोज जल्द ही भारतीय राजनीती का
अभिन्न अंग बन चुके थे। इसके बाद वे लगातार अपने ससुर जी के सरकार की आलोचना करते थे
और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने लगे थे।
आज़ादी के बाद के कुछ
वर्षो में ही बहुत से भारतीय व्यापारी घरो ने राजनीतिक नेताओ के साथ अच्छे संबंध बना
रखे थे और इसके बाद उन्होंने वित्तीय अनियमितता भी शुरू कर दी। दिसम्बर 1955 में फिरोज
द्वारा उजागर किये गये केस में, उन्होंने बताया की एक बैंक के चेयरमैन राम किशन डालमिया
और एक बीमा कंपनी, गैरकानूनी तरीको से सामाजिक कंपनियों और लोगो के पैसो का उपयोग कंपनी
के फायदों के लिए करते थे।
इसके बाद 1957 में
रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से पुनः वे चुने गये। 1958 में संसद भवन में उन्होंने हरिदास
मुंधरा के सरकारी नियंत्रण की LIC बीमा कंपनी के स्कैंडल में शामिल होने का मुद्दा
उठाया था। इसे नेहरु के साफ-सुथरी सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा और इसके चलते अर्थमंत्री
टी.टी. कृष्णामचारी को इस्तीफा भी देना पड़ा। मीडिया ने भी उस समय अपने चैनलों के माध्यम
से फिरोज को काफी प्रचलित बनाया।
इसके साथ-साथ फिरोज
ने बहुत से राष्ट्रिय अभियानों की भी शुरुवात की, जिसकी शुरुवात जीवन बिमा कंपनी से
हुई। जब टाटा इंजिनियर और लोकोमोटिव कंपनी (टेल्को) जापानी रेलवे इंजन की तुलना में
दोगुने पैसे वसूलती थी तब उन्होंने इन कंपनियों के राष्ट्रीकरण का भी सुझाव दिया था।
इस वजह से पारसी समुदाय में हलचल मच गयी, क्योकि टाटा भी पारसी ही थे।
इसके बाद बहुत से मुद्दों
पर उन्होंने लगातार सरकार को चुनौती देना शुरू किया और इससे बहुत से राजनीतिक दलों
में उन्होंने अपनी अच्छी-खासी छवि बना ली थी।
मृत्यु और विरासत:
1958 में फिरोज को
एक ह्रदय विकार आया था। उस समय इंदिरा गांधी, जो अपने पिता के साथ प्रधान मंत्री के
अधिकारिक घर तीन मूर्ति हाउस में रहती थी वह उस समय भूटान की यात्रा पर गयी थी। इसके
बाद वह लौटकर फिरोज को देखने के लिए कश्मीर गयी।
1960 में दूसरा ह्रदय
विकार आने के बाद दिल्ली के विलिंगडॉन हॉस्पिटल में उनकी मृत्यु हो गयी। अलाहाबाद के
पारसी कब्रिस्तान में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया।
रायबरेली में एक उच्च
माध्यमिक स्कूल का नाम पर उन्ही के नाम पर रखा गया है।
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