Sucheta Kriplani -First Woman Chief Minister Of India
सुचेता कृपलानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थी. वह उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनी और भारत की प्रथम महिला मुख्य मंत्री थी.
सुचेता का जन्म पंजाब के अम्बाला में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्होंने पंजाब के ही इन्द्रप्रस्थ कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी. और बाद में वे बनारस के हिन्दू यूनिवर्सिटी की इतिहास (कानून) की प्रोफेसर बनी. बाद में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेता आचार्य कृपलानी से शादी कर ली. दोनों ने परिवारों ने उनकी शादी का विरोध किया था क्योकि आचार्य खुद को गाँधी बताते थे.
उनके जैसी समकालीन महिलाये अरुणा असफ अली और उषा मेहता ने भी सुचेता के साथ भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया. बाद में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसा के रास्ते पर काम किया. सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओ में शामिल है जिन्होने बापू के करीब रहकर देश की आज़ादी की नीव राखी.
14 अगस्त 1947 को उन्होंने वन्दे मातरम गीत भी गाया. संसद में नेहरु के भाषण देने से पहले ही उन्होंने यह गीत गाया था. इसके साथ ही वह 1940 में स्थापित ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की संस्थापिका भी थी.
आज़ादी के बाद भी वह राजनीती में बनी रही. 1952 में पहले लोकसभा चुनाव के लिये वह न्यू दिल्ली से खड़ी हुई. बाद में सुचेता अपने पति द्वारा स्थापित पार्टी में कुछ समय के लिये शामिल हो गयी. चुनाव में उन्होंने अपने अपने पति की पार्टी से लड़ते हुए कांग्रेस उम्मेदवार मनमोहिनी सहगल को पराजित किया था. पांच सालो बाद, उसी क्षेत्र से पुनर्निर्वाचित की गयी, लेकिन उस समय वह कांग्रेस उम्मेदवार थी. 1967 में अंतिम बार वह लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के गोंडा क्षेत्र से चुनी गयी थी.
तभी से सुचेता उत्तर प्रदेश के वैधानिक सदन की सदस्य बनी. 1960 से 1963 एक उन्होंने मजदुर मंत्री बनकर सेवा की. अक्टूबर 1963 में, वह उत्तर प्रदेश की मंत्री बनी. उस समय किसी भी भारतीय राज्य में इस पद को पाने वाली पहली महिला बनी.
उनके काल में सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात मतलब उस समय कर्मचारियों द्वारा की गयी हड़ताल. कर्मचारियों की हड़ताल लगभग 62 दिनों तक चली. लेकिन फर्म के अधिकारियो की सहायता से उन्होंने कर्मचारियों की मांगो को पूरा करने से इंकार कर दिया.
1971 में उन्होंने राजनीती से सन्यास ले लिया और 1974 में अपनी मृत्यु तक वह एकांत में रहने लगी.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया. पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं.
उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था. एक शख्सीयत और कई रूप-आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलेंगे. भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया-
‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा’. उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया. इसके लिए अंडर ग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई. लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी.
राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं. दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती.
स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. 1974 को उनका निधन हो गया
सुचेता का जन्म पंजाब के अम्बाला में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ. उन्होंने पंजाब के ही इन्द्रप्रस्थ कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी. और बाद में वे बनारस के हिन्दू यूनिवर्सिटी की इतिहास (कानून) की प्रोफेसर बनी. बाद में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेता आचार्य कृपलानी से शादी कर ली. दोनों ने परिवारों ने उनकी शादी का विरोध किया था क्योकि आचार्य खुद को गाँधी बताते थे.
उनके जैसी समकालीन महिलाये अरुणा असफ अली और उषा मेहता ने भी सुचेता के साथ भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया. बाद में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसा के रास्ते पर काम किया. सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओ में शामिल है जिन्होने बापू के करीब रहकर देश की आज़ादी की नीव राखी.
14 अगस्त 1947 को उन्होंने वन्दे मातरम गीत भी गाया. संसद में नेहरु के भाषण देने से पहले ही उन्होंने यह गीत गाया था. इसके साथ ही वह 1940 में स्थापित ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की संस्थापिका भी थी.
आज़ादी के बाद भी वह राजनीती में बनी रही. 1952 में पहले लोकसभा चुनाव के लिये वह न्यू दिल्ली से खड़ी हुई. बाद में सुचेता अपने पति द्वारा स्थापित पार्टी में कुछ समय के लिये शामिल हो गयी. चुनाव में उन्होंने अपने अपने पति की पार्टी से लड़ते हुए कांग्रेस उम्मेदवार मनमोहिनी सहगल को पराजित किया था. पांच सालो बाद, उसी क्षेत्र से पुनर्निर्वाचित की गयी, लेकिन उस समय वह कांग्रेस उम्मेदवार थी. 1967 में अंतिम बार वह लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के गोंडा क्षेत्र से चुनी गयी थी.
तभी से सुचेता उत्तर प्रदेश के वैधानिक सदन की सदस्य बनी. 1960 से 1963 एक उन्होंने मजदुर मंत्री बनकर सेवा की. अक्टूबर 1963 में, वह उत्तर प्रदेश की मंत्री बनी. उस समय किसी भी भारतीय राज्य में इस पद को पाने वाली पहली महिला बनी.
उनके काल में सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात मतलब उस समय कर्मचारियों द्वारा की गयी हड़ताल. कर्मचारियों की हड़ताल लगभग 62 दिनों तक चली. लेकिन फर्म के अधिकारियो की सहायता से उन्होंने कर्मचारियों की मांगो को पूरा करने से इंकार कर दिया.
1971 में उन्होंने राजनीती से सन्यास ले लिया और 1974 में अपनी मृत्यु तक वह एकांत में रहने लगी.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया. पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं.
उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था. एक शख्सीयत और कई रूप-आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलेंगे. भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया-
‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा’. उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया. इसके लिए अंडर ग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई. लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी.
राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं. दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की कोशिश हमेशा रहती.
स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. 1974 को उनका निधन हो गया
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